
महाकवि विद्यापति का जीवन । Life of Mahakavi Vidyapati
महाकवि विद्यापति का आदिकालीन हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान है । विद्यापति अपनी पदावली के लिए विश्व विख्यात है । विद्यापति के जन्म के विषय में विद्वानों में बहुत मतभेद हैं । डॉक्टर जयकान्त मिश्र उनका जन्म 1350 ईस्वी में, डॉक्टर सुभद्र झा 1352 ईस्वी में तथा पंडित हरप्रसाद शास्त्री 1357 ईस्वी में बताते हैं ।
विद्यापति के गुरु का नाम पंडित हरि मिश्र था । विद्यापति का जन्म स्थान विसपी है । यह गाँव बिहार के दरभंगा जिले में आते हैं । विद्यापति तिरहुत के राजा शिवसिंह और कीर्तिसिंह के दरबारी कवि थे । विद्यापति शिव और शक्ति दोनों के भक्त थे । शक्ति के रूप में उन्होंने गंगा, दुर्गा, काली की उपासना की और उन्होनें उन्हें अपनी रचनाओं में स्थान दिया । विद्यापति नें सर्वप्रथम कृष्ण को काव्य का विषय बनाया ।
महाकवि विद्यापति की रचनाएं । Mahakavi Vidyapati ki rachnayen
विद्यापति नें कुल 14 ग्रंथों की रचना की । इनकी रचनाएं संस्कृत, अवहट्ठ और मैथिली में है जो निम्नलिखित है ।
विद्यापति ने संस्कृत में शैव सर्वस्व सार, गंगा वाक्यावली, दुर्गाभक्त तरंगिणी, भू परिक्रमा, दान वाक्यावली, पुरुष परीक्षा, विभाग सार, लिखनावली आदि ग्रंथों की रचना की ।
विद्यापति ने अवहट्ठ में कीर्तिलता, कीर्ति पताका की रचना की ।
विद्यापति ने मैथिली में पदावली, गोरक्ष विजय की रचना की ।
विद्वानों ने विद्यापति को भक्त कवि, शृंगारी कवि और रहस्यवादी कवि माना है । विद्यापति को मैथिल कोकिल भी कहा जाता है ।